BA Semester-2 - History - History of Medival India 1206-1757 AD - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई. - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2720
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - इतिहास - मध्यकालीन भारत का इतिहास 1206-1757 ई.

अध्याय - 6 
अकबर से शाहजहाँ : मनसबदारी, राजपूत एवं महाराणा प्रताप के सम्बन्ध व धार्मिक नीति

अपने पिता हुमायूँ की मृत्यु के समय अकबर केवल 14 वर्ष का किशोर था और बैरम खाँ के संरक्षण में था। बैरम खाँ ने हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर कालानौर में अकबर का राज्याभिषेक किया। मुगल सम्राट अकबर विश्व के महान् साम्राज्य निर्माताओं तथा प्रशासकों में से एक था। वह एक आदर्श मानव, लोककल्याणकारी शासक, महान विजेता तथा साम्राज्य निर्माता था। वह कला और साहित्य का संरक्षक था तथा विद्वानों का आश्रयदाता था। उसका दृष्टिकोण अत्यन्त व्यापक तथा बहुआयामी था। उसे इन्हीं उपलब्धियों के कारण से महान् कहा जाता है। वास्तव में मुगल साम्राज्य की नींव तो अवश्य बाबर ने रखी थी, किन्तु निरंतर युद्धों व पलायनवादी जीवन के कारण साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान नहीं कर सका जबकि अकबर ने ही सर्वप्रथम मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया। अकबर एक युग पुरुष व युग निर्माता था।

अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में 15 अक्टूबर 1542 को हुआ था। हुमायूँ और कामरान के बीच कन्धार को लेकर हो रहे युद्धों के दौरान जब हुमायूँ की तोपें कन्धार के किले पर आग बरसा रही थी। उस समय कामरान ने बालक अकबर को किले की दीवार पर लटका दिया था किन्तु सौभाग्य से वह बच गया। अकबर ने अपने बाल्यकाल में ही गजनी और लाहौर के सूबेदार के रूप में कार्य किया था। हुमायूँ की मृत्यु के अवसर पर अकबर पंजाब में सिकन्दर सूर से युद्ध कर रहा था। अकबर का राज्याभिषेक बैरम खाँ की देख-रेख में पंजाब के गुरुदासपुर जिले के कालानौर नामक स्थान पर 14 फरवरी 1556 ई0 को मिर्जा अबुल कासिम ने किया था। अकबर के लिए सर्वप्रथम संकट मुहम्मद आदिल साहब सूर ने उपस्थित किया था। 1556 ई0 में अकबर ने बैरम खाँ को अपना वकील (वजीर) नियुक्त कर उसे खॉन-ए-खाना की उपाधि प्रदान की थी। अकबर के सिंहासनारूढ़ होने के कुछ माह के भीतर ही बिहार के मुहम्मद आदिलशाह के महत्वाकांक्षी वजीर हेमू ने आगरा सहित बयाना से दिल्ली तक के प्रदेश पर अधिकार कर लिया तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। नवम्बर 1556 में बैरम खाँ के नेतृत्व मुगल सेना ने दिल्ली की ओर कूच किया और पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू को पराजित किया। विजयोंपरान्त अकबर ने आगरा में प्रवेश किया जो एक बार फिर मुगल राजधानी बन गया। आगामी 4 वर्षों में बैरम खाँ ने हिन्दुस्तान के विभिन्न भागों में अफगान सत्ता को कुचल डाला।

शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी 1592 ई० को लाहौर में मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह की पुत्री जगत गोसांई के गर्भ से हुआ था। उसका बचपन का नाम खुर्रम था, बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि और चतुर था। इसी कारण अकबर उसे अत्यन्त प्रेम करता था। अकबर ने उसकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध अपनी देख-रेख में किया। जिससे वह सुयोग्य शासक बन सके। उसे फारसी भाषा एवं साहित्य का अच्छा ज्ञान था। उसने इतिहास, राजनीति, भूगोल, धर्मशास्त्र आदि का भी अच्छा ज्ञान अर्जित किया। सैन्य शिक्षा उसके शिक्षा का एक प्रमुख विषय था। युवावस्था में पदार्पण से पूर्व ही वह मुगल साम्राज्य का श्रेष्ठ सेनानायक माना जाने लगा। अक्टूबर 1627 में लाहौर में जहाँगीर की मृत्यु के समय शाहजहाँ दक्कन में था। लाहौर में नूरजहाँ ने शहरयार को सम्राट घोषित कर दिया, जबकि आसफ खाँ ने शाहजहाँ के दक्कन से आगरा वापस आने तक अन्तरिम व्यवस्था के रूप में  खुसरो के पुत्र दावर वख्श को राजगद्दी पर आसीन किया। फरवरी, 1628 ई० में शाहजहाँ के आगरा पहुँच जाने पर दाबर बख्श को गद्दी से उतार दिया गया। आसफ खाँ ने शहरयार को पराजित कर बन्दी बना लिया और उसे अन्धा कर दिया। अब शाहजहाँ के लिए रास्ता साफ हो गया था। फरवरी 1628 में आगरा में शाहजहाँ मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ। शाहजहाँ के शासन के तीन वर्ष बुन्देला सरदार जुझार सिंह तथा खान जहाँ लोदी के विद्रोहों के कारण अशान्त बने रहे। इन विद्रोहों को कुचलने के बाद उसने हुगली से पुर्तगालियों को निकाल बाहर किया तथा 1632 में उस पर कब्जा कर लिया और अन्ततः अहमदनगर के निजामशाही राज्य को भी मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया। 1636-37 में स्वयं शाहजहाँ का दक्षिण आगमन हुआ तथा शक्ति प्रदर्शन के उपरान्त बीजापुर तथा गोलकुण्डा के सुल्तानों को मुगलों की प्रभुसत्ता स्वीकार करने और मुगलों को वार्षिक कर राशि अदा करने के लिए बाध्य किया। 1636 में शाहजहाँ ने अपने पुत्र औरंगजेब को दक्कन का मुगल वायसराय नियुक्त किया। अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान वह आठ वर्षों (1636-44) तक इस पर बना रहा।

उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रदेश चार सूबों में विभाजित थे—
(क) कान देश जिसकी राजधानी बुरहानपुर थी और इसकी सैनिक राजधानी असीरगढ़ थी।
(ख) बरार जिसकी राजधानी एलिचपुर में थी,
(ग) तेलंगाना, जिसकी राजधानी नान्देड़ में थी।
(घ) अहमदनगर — इसमें निजामशाही प्रदेश का हाल ही में शामिल किया गया भाग भी सम्मिलित था।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • अकबर का जन्म अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में 15 अक्टूबर 1542 ई० को हुआ।
  • अकबर अपने जन्म के प्रारम्भिक तीन वर्ष अस्करी के संरक्षण में रहा।
  • अकबर के प्रारम्भिक शासनकाल में बैरम खाँ वकील एवं संरक्षक था।
  • अकबर ने 1563 ई० में तीर्थ यात्रा कर को समाप्त कर दिया।
  • 1564 ई0 में अकबर ने जजिया कर को समाप्त कर दिया।
  • 1567 ई0 में अकबर ने चित्तौड़ के किले का घेरा डाला। उदय सिंह ने सामंतों की सलाह पर किले का भार जयमल और फत्ता (फतेहसिंह) को सौंपकर जंगलों में छिप गया था। चित्तौड़गढ़ का किला मध्य राजस्थान का प्रवेश द्वार माना जाता था।
  • चित्तौड़गढ़ के किले में हुआ कत्लेआम ऐसा पहला और अन्तिम अवसर था जब अकबर ने ऐसा कत्लेआम करवाया था जो अकबर के नाम पर एक बड़ा धब्बा है।
  • अकबर जयमल और फत्ता की वीरता से इतना प्रभावित हुआ कि इन दोनों वीरों की हाथी पर सवार प्रतिमा को आगरे के किले के मुख्य द्वार पर स्थापित करवाया था।
  • अकबर ने चित्तौड़गढ़ विजय के उपलक्ष्य में 'फतहनामा' जारी किया था।
  • 1572 ई० में अकबर द्वारा गुजरात पर आक्रमण किया गया जिसका कारण इसकी समृद्धि एवं विश्व व्यापार का प्रमुखतम केन्द्र स्थान होना था।
  • अकबर की राजपूत नीति का उद्देश्य  साम्राज्य के स्थायित्व के लिए राजपूतों की सहानुभूति प्राप्त करना था।
  • अकबर ने राजपूत नीति के परिणामस्वरूप 1503 ई0 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 ई0 में 'जजिया कर' को समाप्त कर दिया।
  • अकबर की धार्मिक नीति का मुख्य उद्देश्य सार्वभौमिक सहिष्णुता था। इसे 'सुलहकुल' की नीति अर्थात् सभी के साथ शान्तिपूर्ण व्यवहार का सिद्धान्त भी कहा जाता था।
  • अकबर के प्रारंभिक धार्मिक विचारों पर उसके शिक्षक अब्दुल लतीफ तथा सूफी विचारधारा का काफी प्रभाव पड़ा था।
  • अकबर समस्त धार्मिक मामलों को अपने हाथों में लेने के लिए 1579 में 'महजरनामा' या एक घोषणा जारी करवाया। जिसने उसे धर्म के मामलों में सर्वोच्च बना दिया। इस पर पाँच उलेमाओं या इस्लामी धर्मविदों का हस्ताक्षर था।
  • महजर को स्मिथ और वूल्डाले लेग ने “अचूक आज्ञापत्र " कहा।
  • 1582 ई० में सभी धर्मों में सामञ्जस्य के लिए तौहदि-ए-इलाही (दैवी एकेश्वरवाद) का 'दीन- ए-इलाही' नामक नया धर्म प्रवर्तित किया।
  • अकबर के काल में मुगल प्रधानमंत्री को वकील कहा जाने लगा।
  • अकबर के शासनकाल के आकस्मिक वर्षों में बैरम खाँ ने वकील के रूप में अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया था।
  • इसलिए अकबर ने बैरम खाँ के पतन के बाद अपने शासनकाल के 8वें वर्ष एक नया पद दीवान-ए-वजारत- ए- कुल की स्थापना की। जिसे राजस्व एवं वित्तीय मामलों के प्रबन्ध का अधिकार प्रदान किया गया।
  • धीरे-धीरे अकबर ने 'वकील' के एकाधिकार को समाप्त कर उसके अधिकारों को— दीवान मीरबख्शी, तथा मीर- सामां और सद्र-उंस सुदूर में बाँट दिया। उसके बाद से यह पद केवल सम्मान का पद रह गया जो शाहजहाँ के समय तक चलता रहा।
  • अकबर के काल में केवल चार ही मन्त्रीपद थे— वकील, दीवान, (अथवा वजीर), मीर बख्शी एवं सद्र।
  • दीवान शब्द फारसी मूल का शब्द है। इस पद की स्थापना अकबर ने अपने शासनकाल के 8वें वर्ष वकील के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए किया था। इसे वजीर भी कहा जाता है। यह वित्त एवं राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी होता है।
  • मुगल बादशाहों के काल में मुजफ्फर खाँ तुरबती, राजा टोडरमल एवाजशाह मंसूर (सभी अकबर कालीन) एतमादुद्दौला (जहाँगीर) सादुल्लाखाँ (शाहजहाँ कालीन) और मंसूर खां (औरंगजेब कालीन) आदि योग्यतम दीवान थे।
  • मुगलकाल में असद खाँ ने सर्वाधिक 31 वर्षों तक दीवान के पद पर कार्य किया था।
  • दीवाने खालिसा (शाही भूमि की देखभाल करने वाला अधिकारी) दीवान-ए-तन ( वेतन तथा जागीरों की देखभाल करने वाला) मुस्तौफी (आय-व्यय का निरीक्षक) तथा मुशरिफ |
  • दीवान की सहायता के लिए अनेक अन्य अधिकारी भी होते थे
  • मीर बख्शी सैन्य विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होता था। इस पद का विकास अकबर के काल में शुरू हुआ था।
  • मीर बख्शी का प्रमुख कार्य सैनिकों की भर्ती, उसका हुलिया रखना, रसद प्रबन्ध, सेना में अनुशासन रखना तथा सैनिकों के लिए हथियारों तथा हाथी, घोड़ों का प्रबन्ध करना था।
  • इसके अतिरिक्त वह शाही महल की सुरक्षा का उत्तरदायित्व भी वहन करता था।
  • मुगलकाल में मीरबख्शी सैन्यमंत्री होने पर भी वह न तो सेनानायक होता था न ही स्थायी वेतन अधिकारी।
  • मीर बख्शी को युद्ध के दौरान छोड़कर बाकी सेना को वेतन बाँटने का कोई अधिकार नहीं था। सामान्यतः यह अधिकार 'दीवाने-तन' का होता था।
  • मीर बख्शी के द्वारा 'सरखत' नामक पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही सेना का मासिक वेतन ) निर्धारित होता था।
  • प्रांत में 'वाकयानवीस' मीर बख्शी को सीधे सूचना देते थे।
  • अकबर ने अपने शासनकाल में दरिद्रों एवं अनाथों को मुफ्त भोजन देने के लिए 'धर्मपुरा' (हिन्दुओं के लिए), 'जोगीपुरा (जोगियों के लिए) तथा खैरपुरा (मुसलमानों तथा अन्य के लिए) नाम के तीन दरिद्रालय खुलवाए और जिनकी देख-रेख का उत्तरदायित्व 'अबुल फजल' को दिया गया था।
  • अकबर ने 1580 ई0 में अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को 12 सूबों (प्रान्तों) में विभाजित किया, किन्तु शासनकाल के अन्तिम समय में दक्षिण भारत के बराबर खानदेश एवं अहमदनगर की विजय के पश्चात् सूबों की संख्या बढ़कर 15 हो गयी।
  • शाहजहाँ के समय सूबों की संख्या कश्मीर श्रद्धा एवं उड़ीसा के साथ 18 हो गयी।
  • शाहजहाँ ने अपने सभी भाइयों एवं सिंहासन के सभी प्रतिद्वन्द्वियों तथा अन्त में दाबर बख्श को समाप्त कर 24 फरवरी 1628 ई० की आगरे के सिंहासन पर बैठा।
  • समकालीन इतिहासकारों ने 'दाबर बख्श' को “बलि का बकरा" कहा है।
  • शाहजहाँ की मृत्यु 1666 ई0 में हुई और उसे भी ताज महल में उसकी पत्नी की कब्र के निकट साधारण नौकरों द्वारा दफना दिया गया।
  • शाहजहाँ के शासनकाल में पहला विद्रोह 1628 ई0 में उसके एक योग्य बुन्देला नायक जुझार सिंह का था।
  • शाहजहाँ के शासनकाल के चौथे एवं पाँचवें वर्ष (1630-32 ई०) दक्कन और गुजरात में एक भीषण दुर्भिक्ष पड़ा था जिसकी वजह दक्कन और गुजरात बीरान हो गया। जिसकी भयंकरता का वर्णन अंग्रेज व्यापारी पीटर मुंडी ने किया है—--
  • शाहजहाँ ने दक्षिण भारत में सर्वप्रथम अहमद नगर पर आक्रमण किया और 1633 ई0 में उसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
  • शाहजहाँ ने 1636-37 में "सिजदा " एवं "पायबोस" प्रथा को समाप्त कर दिया तथा उसके स्थान पर 'चहार - तालीम' की प्रथा शुरू करवायी तथा पगड़ी में बादशाह की तस्वीर पहनने की मनाही कर दी।
  • शाहजहाँ ने 'इलाही संवत्' के स्थान पर "हिजरी संवत्" चलाया, हिन्दुओं को मुसलमान गुलाम रखने से करना कर दिया।
  • हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर लगा दिया (यद्यपि कुछ समय बाद हटा लिया )।
  • गोहत्या निषेध सम्बन्धी अकबर और जहाँगीर के आदेश को समाप्त कर दिया।
  • अपने शासन के सातवें वर्ष शाहजहाँ ने यह आदेश जारी किया कि यदि कोई स्वेच्छा से मुसलमान बन जाए तो उसे अपने पिता की सम्पत्ति का हिस्सा प्राप्त हो जाएगा।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय -1 तुर्क
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 खिलजी
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 तुगलक वंश
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 लोदी वंश
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मुगल : बाबर, हूमायूँ, प्रशासन एवं भू-राजस्व व्यवस्था विशेष सन्दर्भ में शेरशाह का अन्तर्मन
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 अकबर से शाहजहाँ : मनसबदारी, राजपूत एवं महाराणा प्रताप के सम्बन्ध व धार्मिक नीति
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 औरंगजेब
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 शिवाजी के अधीन मराठाओं के उदय का संक्षिप्त परिचय
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 मुगलकाल में वास्तु एवं चित्रकला का विकास
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 भारत में सूफीवाद का विकास, भक्ति आन्दोलन एवं उत्तर भारत में सुदृढ़ीकरण
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला

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